निखिल वखारिया
गरियाबंद। रमजान का पाक महीना इबादत, संयम और अल्लाह की रहमतों से भरा होता है। इस साल 2 मार्च 2025 से रमजान की शुरुआत हुई, और पूरे देशभर में रोज़ेदारों ने पहला रोज़ा रखा। लेकिन छत्तीसगढ़ के गरियाबंद से एक ऐसी भावुक कर देने वाली तस्वीर सामने आई, जिसने सभी को प्रेरित किया।

सात साल के मासूम मोहम्मद इशरार मेमन ने अपनी छोटी उम्र के बावजूद पहला रोज़ा रखने की ठान ली। परिवारवालों ने पहले उसे समझाने की कोशिश की कि रोज़े के लिए संयम और धैर्य की आवश्यकता होती है और वह अभी बहुत छोटा है, लेकिन इशरार की अडिग नीयत और सच्ची श्रद्धा के आगे वे झुक गए।
नन्हे रोज़ेदार की बड़ी आस्था
रोज़े की शुरुआत सेहरी से होती है, और इशरार भी बड़े उत्साह के साथ परिवार के साथ सेहरी में शामिल हुआ। पूरे दिन बिना पानी की एक बूंद पिए और बिना कुछ खाए, उसने रोज़े की कठिन परीक्षा को पूरा किया।
गरमी और थकान के बावजूद, नन्हे इशरार ने कभी भी कोई शिकायत नहीं की, बल्कि पूरे दिन खुदा की इबादत में लगा रहा। शाम होते ही जब इफ्तार का वक्त आया, तो पूरा परिवार उसकी हिम्मत को देखकर भावुक हो गया। परिवार ने इशरार को नए कपड़े पहनाए, उसके गले में माला डाली और पूरे घर में खुशी का माहौल छा गया।
परिवार हुआ भावुक, मांगी गई दुआएं

इशरार की इस पवित्र श्रद्धा से उसके माता-पिता मोहम्मद साजिद मेमन, परिवार के मुखिया पार्षद आसिफ़ भाई मेमन और आबिद मेमन सहित सभी परिजन भावुक हो गए। उन्होंने खुदा से दुआ मांगी कि इशरार को हमेशा नेक राह पर चलने की हिम्मत और आशीर्वाद मिले।
इशरार की दृढ़ नीयत बनी प्रेरणा
रमजान का पहला रोज़ा अक्सर बड़े-बुजुर्गों के लिए संयम और इबादत का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इस नन्हे रोज़ेदार ने यह साबित कर दिया कि सच्चे इरादे और अल्लाह के प्रति आस्था के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती।
इशरार की यह श्रद्धा और संकल्प न केवल उसके परिवार के लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए प्रेरणा बन गई। उसकी इस छोटी उम्र में किए गए बड़े संकल्प ने यह संदेश दिया कि सच्ची आस्था और समर्पण से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है।