निखिल वखारिया ।
गरियाबंद। गायत्री मंदिर परिसर में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में जैन मुनि ऋषभ सागर जी महाराज ने समाज में बढ़ते स्वार्थ, रिश्तों की गिरती पवित्रता और नैतिक मूल्यों के क्षरण पर गहरी चिंता व्यक्त की। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति में उन्होंने अपने ओजस्वी प्रवचन के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि “सज्जन व्यक्ति के लिए हर युग सतयुग है और दुर्जन के लिए सतयुग भी कलयुग।”
संस्कारों और नैतिकता के पतन पर गहरी चिंता
मुनि ऋषभ सागर जी महाराज ने कहा कि आधुनिक पीढ़ी भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर इतनी आकर्षित हो गई है कि पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की अहमियत घटती जा रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “जिस देश में श्रवण कुमार जैसे आदर्श पुत्र हुए, वहाँ आज माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।”
उन्होंने कहा कि पहले लोग अजनबियों तक पर भरोसा करते थे, लेकिन आज हालात यह हैं कि अपने परिजनों पर भी विश्वास कमजोर पड़ता जा रहा है। यह नैतिक मूल्यों के ह्रास का संकेत है, जो समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
सकारात्मक सोच से बनेगा सुखद समाज
अपने प्रवचन में उन्होंने समाज को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि, “हमारी मान्यताएँ हमारे जीवन की दिशा तय करती हैं। यदि हम अच्छा सोचेंगे, तो सब अच्छा होगा।” उन्होंने प्रेम, सहयोग और सेवा भाव को अपनाने का आह्वान किया और कहा कि जो व्यक्ति परोपकार और सेवा में तत्पर रहता है, वही सच्चे मानव कहलाने योग्य है।
“मानवता ही सच्ची पहचान” – जाति-धर्म से ऊपर उठने का संदेश
ऋषभ सागर जी महाराज ने बताया कि “मानवता जिनके अंदर है, वही सच्चे मानव हैं।” उन्होंने जाति, धर्म और वर्गभेद से ऊपर उठकर प्रेम, करुणा और परोपकार की भावना को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि समाज में यदि शांति और सौहार्द बनाए रखना है, तो हमें भेदभाव छोड़कर एकता और सद्भाव की भावना अपनानी होगी।
अच्छाई को त्यागने से समाज में बढ़ती है बुराई
मुनि श्री ने समाज को चेताते हुए कहा कि, “यदि हम एक अच्छाई छोड़ते हैं, तो दस बुराइयाँ हमें घेर लेती हैं।” इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी परंपराओं, संस्कारों और नैतिकता को सहेज कर रखें। आत्मचिंतन और सत्कर्मों के माध्यम से हम समाज में सौहार्द, प्रेम और विश्वास को मजबूत कर सकते हैं।
प्रवचन से मिली समाज को प्रेरणा
मुनि ऋषभ सागर जी महाराज के प्रवचन ने श्रद्धालुओं को आत्मचिंतन और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने जीवन में नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता दें, अपने परिजनों के साथ प्रेम और विश्वास बनाए रखें तथा समाज के कल्याण हेतु कार्य करें, तो हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकते हैं।
इस अवसर पर ललित पारख, विकास पारख, मिलेश्वरी साहू, सुमित पारख सहित जैन समाज एवं अन्य धर्मप्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। श्रद्धालुओं ने मुनि श्री के विचारों को आत्मसात करने का संकल्प लिया और समाज में सद्भाव और नैतिक मूल्यों को पुनः स्थापित करने का संकल्प लिया।