निखिल वखारिया।
चेटीचंड: सिंधी नववर्ष की शुभ शुरुआत का पावन पर्व
गरियाबंद-चैत्र शुक्ल द्वितीया से सिंधी नववर्ष का शुभारंभ होता है, जिसे चेटीचंड के नाम से जाना जाता है। चैत्र मास को सिंधी भाषा में ‘चेट’ और चांद को ‘चण्डु’ कहा जाता है। इसीलिए चेटीचंड का अर्थ है ‘चैत्र का चांद’। इस वर्ष यह पावन पर्व 30 अप्रैल, रविवार को पूरे भक्ति भाव के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सिंधी समाज के लोग गरियाबंद के स्वामी आत्मानंद स्कूल के समीप एकत्रित हुए, जहां समाज द्वारा चेटीचंड के पर्व पर हजारों श्रद्धालुओं के लिए शरबत और चना प्रसाद का वितरण किया गया।

भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव और उसकी महत्ता
चेटीचंड (Cheti Chand) का सिंधी समाज में विशेष महत्व है। यह पर्व भगवान झूलेलाल के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें उदेरोलाल के नाम से भी जाना जाता है। भगवान झूलेलाल को जल देवता का अवतार माना जाता है, जो समाज में शांति, सद्भावना और भाईचारा स्थापित करने के लिए प्रकट हुए थे। इस दिन जल देवता की पूजा कर उनका आभार जताया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह को एक महत्वपूर्ण महीना माना जाता है, जिसे सिंधी समुदाय ‘चेत’ कहते हैं। इसके अलावा, उनके पंचांग के अनुसार प्रत्येक नया महीना अमावस्या यानी ‘चांद’ से शुरू होता है। इसलिए, इस पर्व को चेटीचंड कहा जाता है और पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।
समाज के प्रमुख सदस्य और उनका संदेश
इस मौके पर समाज के प्रमुख सदस्य अजय रोहरा ने कहा, “सिंधी समाज हर साल इस पर्व को पूरे उत्साह और धूमधाम से मनाता है। चेटीचंड केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, एकता और भगवान झूलेलाल के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। यह पर्व हमें आपसी प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश देता है।” उन्होंने आगे कहा कि समाज के सभी लोग इस आयोजन को सफल बनाने के लिए एकजुट होकर कार्य करते हैं, जो हमारी सामाजिक समरसता को दर्शाता है।
पौराणिक कथा: भगवान झूलेलाल का दिव्य अवतार
चेटीचंड का यह पर्व अवतारी युगपुरुष भगवान झूलेलाल के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान झूलेलाल का जन्म समाज में सद्भावना, शांति और भाईचारा स्थापित करने के लिए हुआ था। उनकी शिक्षाएं आज भी सिंधी समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। खास तौर पर पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भारत के विभिन्न हिस्सों में आकर बसे हिंदुओं में भगवान झूलेलाल की पूजा का विशेष प्रचलन है।
उनके भक्त उन्हें उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल जैसे कई नामों से पुकारते और पूजते हैं। भगवान झूलेलाल को जल और ज्योति का अवतार माना जाता है। इसी कारण इस पर्व पर लकड़ी से बना एक छोटा मंदिर तैयार किया जाता है, जिसमें जल से भरा लोटा और प्रज्वलित ज्योति रखी जाती है। श्रद्धालु इसे ‘बहिराणा साहब’ कहते हैं और चेटीचंड के दिन इसे सिर पर उठाकर भक्ति भाव से झूमते हैं। यह दृश्य आस्था और उत्साह का अनुपम संगम प्रस्तुत करता है।
समाज के प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति
इस भव्य आयोजन में समाज के कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। इनमें श्री राम माखीजा, जय राम रोहरा, वीर भान दास रोहरा, कन्हैया रोहरा, प्रकाश रोहरा, रॉकी रोहरा, सुनील रोहरा, विकास रोहरा, आशीष रोहरा, अजय रोहरा, आसिफ मेमन, अजय दासवानी, बिनय दासवानी, रितेश रोहरा, रवि रोहरा, रोहित रोहरा, हार्दिक रोहरा, उमेश बर्फानी, राधेश्याम सोनवानी सहित समाज के अन्य प्रमुख सदस्य शामिल थे।
उत्सव के मुख्य आकर्षण
- जल और ज्योति पूजन – ‘बहिराणा साहब’ की विशेष पूजा अर्चना की गई।
- भंडारा एवं प्रसाद वितरण – श्रद्धालुओं के लिए विशेष भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें चना और शरबत प्रसाद के रूप में वितरित किया गया।
समाज में सौहार्द और समरसता का प्रतीक
चेटीचंड केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह सिंधी समाज की संस्कृति, एकता और उनके इतिहास का जीवंत प्रमाण है। यह पर्व समाज को प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश देता है और हर वर्ष इसे और भी उत्साह के साथ मनाने की प्रेरणा देता है।
सिंधी समाज की अपील
समाज के वरिष्ठ सदस्यों ने युवाओं से अपील की कि वे अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहें और इस पर्व को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं। भगवान झूलेलाल के आशीर्वाद से यह पर्व समाज को उन्नति और समृद्धि की ओर अग्रसर करता रहे।
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