✍ संवाददाता: अरविंद कोठारी, ठाणे
संविधानिक अधिकारों के बावजूद फेरीवालों को न्याय कब मिलेगा?
साल 2014 में संसद द्वारा फेरीवाला उपजीविका कानून पास किया गया था, जिसके तहत फेरीवालों की सुरक्षा, उनके रोजगार का अधिकार और हॉकर्स जोन बनाए जाने की बात कही गई थी। बावजूद इसके, ठाणे महानगर पालिका (TMC) के अंतर्गत आने वाली दीवा प्रभाग समिति में आज तक न तो कोई सर्वेक्षण हुआ और न ही फेरीवालों को उचित स्थान मिला।

इस मुद्दे को लेकर धड़ाकेबाज युवा प्रतिष्ठान के महाराष्ट्र राज्य संस्थापक अध्यक्ष श्री अमोल धनराज केंद्रे, सरचिटणीस सौ. अश्विनी अमोल केंद्रे, कार्याध्यक्ष श्री अभय लाल दुबे, अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, दीवा अध्यक्ष अरविंद कोठारी, दीपक भालेराव, राजू गुप्ता, अनिल मौर्या, नितीन आवाडे, सुरेखा तोरणे, सरला गायकर सहित सैकड़ों फेरीवालों ने अपनी नाराजगी जताई।
फेरीवालों पर अन्याय कब रुकेगा?
फेरीवालों की शिकायत है कि TMC का अतिक्रमण विभाग उनकी हाथ गाड़ियों को जब्त करता है और 1,500 से 2,000 रुपये की मांग करता है। यदि यह रकम न दी जाए, तो हाथ गाड़ी को तोड़ने की धमकी दी जाती है। जबकि नियम के अनुसार, 900 रुपये जुर्माना देकर हाथ गाड़ी वापस मिलने चाहिए।
“महीने का 1,500 दो, वरना धंधा बंद”—कौन चला रहा है वसूली का खेल?
पिछले छह महीनों से फेरीवालों से सिवा और रोहित ओझा नामक व्यक्ति कथित रूप से 50 रुपये प्रतिदिन यानी 1,500 रुपये मासिक वसूली कर रहे हैं। यदि कोई इस रकम को देने से इंकार करता है, तो उसकी गाड़ी जब्त कर ली जाती है और उसे व्यापार करने से रोका जाता है।
दीवा प्रभाग समिति पर बड़े सवाल!
- 2014 में संसद में फेरीवाला उपजीविका कानून पास हुआ, फिर अब तक फेरीवालों को जगह क्यों नहीं मिली?
- 2016 में ठाणे महानगर पालिका ने सर्वे किया, फिर 2019 में दीवा प्रभाग समिति ने सर्वेक्षण रोक क्यों दिया?
- 2024 में आदेश मिलने के बाद भी 6 दिसंबर को फेरीवाला समिति की कार्यकारिणी ने सर्वेक्षण क्यों नहीं किया?
- दीवा में 3,000 से अधिक फेरीवाले हैं, उनसे प्रतिदिन 50 रुपये कौन वसूल रहा है?
- फेरीवालों से 30 से 50 रुपये प्रतिदिन वसूलने वाले कौन हैं?
- प्रशासन चुप क्यों है? क्या फेरीवालों का हक छीनकर कोई अपनी जेबें भर रहा है?
अवैध वसूली का काला गणित
- एक दिन में: 3,000 × 50 = ₹1,50,000
- एक महीने में: ₹45 लाख
- एक साल में: ₹5.4 करोड़
इसके अलावा, प्रभाग समिति द्वारा 30 रुपये प्रतिदिन की अवैध वसूली का अनुमान:
- एक दिन में: 3,000 × 30 = ₹90,000
- एक महीने में: ₹27 लाख
- एक साल में: ₹3.24 करोड़
- पांच साल में: ₹16.2 करोड़
आखिर समाधान क्या है?
- फेरीवालों का सर्वे तुरंत कराया जाए।
- हॉकर्स जोन बनाए जाएं, ताकि उन्हें उचित व्यापारिक स्थान मिले।
- अवैध वसूली करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो।
- ठाणे महानगर पालिका और दीवा प्रभाग समिति की जवाबदेही तय हो।
- फेरीवालों को न्याय मिले, ताकि आम लोगों को भी साफ-सुथरे रास्ते मिल सकें।
क्या प्रशासन इस भ्रष्टाचार को रोक पाएगा?
अब देखने वाली बात होगी कि ठाणे महानगर पालिका और दीवा प्रभाग समिति इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है या फिर फेरीवालों का शोषण यूं ही जारी रहेगा।
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