निखिल वखारिया
छत्तीसगढ़ में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य विशेषज्ञ की नियुक्ति न होने पर हाईकोर्ट ने जताई चिंता
रायपुर। भारतीय न्याय संहिता लागू होने के बाद डिजिटल सबूतों का महत्व काफी बढ़ गया है। खासकर, साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इनकी अहमियत और भी अधिक हो गई है। हालांकि, छत्तीसगढ़ में अब तक कोई भी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य विशेषज्ञ नियुक्त नहीं किया गया है, जिससे न्याय प्रक्रिया में अड़चनें आ रही हैं। इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर सुनवाई के दौरान माननीय न्यायाधीशों ने चिंता व्यक्त की और केंद्र सरकार को इस दिशा में तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए।
16 राज्यों में विशेषज्ञों की नियुक्ति, छत्तीसगढ़ अब भी पीछे
देशभर में साइबर अपराधों से जुड़े मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे मामलों की जांच के लिए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। वर्तमान में देश के 16 राज्यों में ऐसे विशेषज्ञों की नियुक्ति हो चुकी है, लेकिन छत्तीसगढ़ इस मामले में पिछड़ा हुआ है।
इस मामले में याचिकाकर्ता शिरीन मालेवर ने अपने वकील रुद्र प्रताप दुबे और गौतम खेत्रपाल के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की।
राज्य में विशेषज्ञ की कमी, हाईकोर्ट की गहरी नाराजगी
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जब यह सामने आया कि राज्य में आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत कोई इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षक (डिजिटल फॉरेंसिक एक्सपर्ट) मौजूद नहीं है, तो अदालत ने इस पर गहरी नाराजगी जताई।
राज्य के महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन. भारत ने कोर्ट को बताया कि छत्तीसगढ़ में अभी तक इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई है। इस पर अदालत ने कहा कि साइबर अपराध के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस पद पर विशेषज्ञ की नियुक्ति बेहद जरूरी है।
केंद्र सरकार को हाईकोर्ट का निर्देश
कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया है। मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल रमाकांत मिश्रा को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर कर जवाब देने को कहा गया है।
हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 मार्च 2025 की तारीख तय की है।
क्या है आईटी अधिनियम की धारा 79?
आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत इंटरमीडियरी (जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और इंटरनेट सेवा प्रदाता) को कानूनी सुरक्षा दी जाती है, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि यदि वे गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य विशेषज्ञों की मदद से यह तय किया जाता है कि किसी अपराध में डिजिटल सबूतों की प्रामाणिकता क्या है और उनका उपयोग न्यायिक प्रक्रिया में कैसे किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ में डिजिटल साक्ष्य विशेषज्ञ क्यों जरूरी हैं?
- साइबर अपराधों में वृद्धि: राज्य में ऑनलाइन धोखाधड़ी, डेटा चोरी और अन्य साइबर अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
- डिजिटल साक्ष्यों की जांच: न्यायिक प्रक्रिया में डिजिटल सबूतों का महत्व बढ़ा है, लेकिन विशेषज्ञों की अनुपस्थिति में इनकी सही जांच नहीं हो पाती।
- अन्य राज्यों से पिछड़ापन: देश के 16 राज्यों में पहले ही डिजिटल फॉरेंसिक विशेषज्ञ नियुक्त किए जा चुके हैं, जबकि छत्तीसगढ़ इस मामले में अभी भी पीछे है।
- न्यायिक प्रक्रिया में देरी: डिजिटल सबूतों की जांच में देरी होने से अपराधियों पर कार्रवाई में भी देरी होती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित होती है।
अब आगे क्या?
हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद अब यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस मामले में कितनी जल्दी कदम उठाती है। यदि विशेषज्ञ की नियुक्ति जल्द नहीं होती है, तो इससे राज्य में डिजिटल अपराधों की जांच में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
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