ठाणे की सियासी ज़मीन पर जंग: शिंदे के गढ़ में BJP की सेंधमारी, गठबंधन नहीं तो ‘सीधी टक्कर’ तय

अरविंद कोठारी


ठाणे| 6 अप्रैल 2025
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर ठाणे सुर्खियों में है। यह इलाका शिवसेना (शिंदे गुट) के प्रमुख और राज्य के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का गढ़ माना जाता है, लेकिन आगामी महापालिका चुनावों से पहले यहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) और शिंदे गुट के बीच वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई है। अगर दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं होता है, तो ठाणे में एक बेहद रोचक और सीधी राजनीतिक टक्कर देखने को मिल सकती है।

BJP की आक्रामक रणनीति, गणेश नाईक के नेतृत्व में मोर्चा

ठाणे में शिंदे की पकड़ को कमजोर करने के लिए बीजेपी ने अपने कद्दावर नेता और मंत्री गणेश नाईक को मोर्चे पर उतार दिया है। नाईक के नेतृत्व में पार्टी ने राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से गढ़ने की कोशिश शुरू कर दी है। खासतौर से नवी मुंबई और कलवा-मुंब्रा क्षेत्र में बीजेपी ने अपनी सक्रियता बढ़ाई है, जहां एनसीपी (शरद पवार गुट) के विधायक जितेंद्र आव्हाड का प्रभाव रहा है।

NCP को कमजोर कर दोनों धड़ों में सेंधमारी

बीजेपी ने रणनीतिक तौर पर अब एनसीपी के नगरसेवकों को अपने पक्ष में करने का अभियान शुरू किया है। बताया जा रहा है कि कलवा-मुंब्रा क्षेत्र में आव्हाड समर्थक करीब 18 नगरसेवकों से बातचीत चल रही है। कई नेताओं की बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से बैठक भी हो चुकी है। सत्ता से बाहर होने के कारण ये नेता अब विकास कार्यों के लिए जरूरी फंड की कमी और प्रशासनिक अड़चनों से जूझ रहे हैं, जिससे उनका झुकाव सत्ता पक्ष की ओर बढ़ रहा है।

शिंदे गुट भी दे रहा जवाबी टक्कर

बीजेपी की इस सक्रियता को देखते हुए एकनाथ शिंदे का खेमा भी मैदान में उतर आया है। शिंदे गुट नाईक के प्रभाव वाले नवी मुंबई क्षेत्र में उद्धव ठाकरे गुट के कुछ प्रभावशाली पूर्व नगरसेवकों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। खासतौर से वे क्षेत्र जहां बीजेपी मजबूत है—जैसे ओल्ड ठाणे—वहां शिंदे सेना अपनी पैठ मजबूत कर रही है।

गठबंधन हुआ तो स्थिति अलग, नहीं हुआ तो सीधी जंग

अगर महापालिका चुनावों से पहले बीजेपी और शिंदे गुट के बीच गठबंधन हो जाता है, तो दोनों के लिए रास्ता अपेक्षाकृत आसान हो सकता है। लेकिन अगर गठबंधन नहीं हुआ, तो दोनों दलों को एक-दूसरे से सीधे भिड़ना पड़ेगा। ऐसे में यह टक्कर सिर्फ ठाणे तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसका असर उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और शरद पवार की एनसीपी के स्थानीय नेतृत्व पर भी पड़ेगा।

2017 बनाम 2025: समीकरण बदल चुके हैं

2017 में हुए महापालिका चुनावों में शिवसेना (अविभाजित) ने 67, एनसीपी ने 34 और बीजेपी ने 23 सीटें जीती थीं। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। शिवसेना और एनसीपी दोनों ही दो-दो गुटों में बंट चुकी हैं। ऐसे में नए समीकरण, नई रणनीतियां और नया जनाधार इस बार के चुनावी नतीजों को पूरी तरह बदल सकते हैं।

क्या विपक्ष को लगेगा करारा झटका?

बीजेपी और शिंदे गुट की आपसी खींचतान से जहां सत्ताधारी खेमा खुद उलझा नजर आ रहा है, वहीं इसका लाभ विपक्ष को मिलने की संभावना कम ही नजर आ रही है। उद्धव ठाकरे गुट और आव्हाड जैसे नेता दोनों ही अंदरूनी असंतोष और संगठनात्मक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर बीजेपी और शिंदे सेना के बीच मुकाबला होता है, तो विपक्ष को बड़ा झटका लग सकता है।


. (बिहान न्यूज़24×7 खबरे हमारी,भरोसा आपका)

Nikhil Vakharia

Nikhil Vakharia

मुख्य संपादक

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